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लोकतंत्र पर अवसरवादिता और जोड़तोड़ की राजनीति हावी


लोकतंत्र पर अवसरवादिता और जोड़तोड़ की राजनीति हावी - (अजय सिंह राजपूत)  
           
          हमारे भारत देश में प्रजातंत्र स्थापित है | हमारा देश विश्व में सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है. भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होते हैं और जनता सरकारों का चुनाव करती है | यह प्रक्रिया बरसों से चल रही है, लेकिन अगर आज के परिपेक्ष्य में बात करें तो उत्सवों की तरह होते चुनाव और नेताओं के चुनाव लड़ने के तौर तरीकों में बड़ा बदलाव देखने में आया है | हम देखते रहे हैं कि बरसों से चुनाव सिद्धांतों पर लडे जाते रहे हैं, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर लड़े जाते रहे हैं यह वह सिद्धांत और मुद्दे होते थे जिनसे जनता का सीधे तौर पर हित जुड़ा होता था राजनेता अपनी ईमानदार छवि के बलबूते पर चुनाव लड़ते थे और जीतते थे जनता में भी उन नेताओं के प्रति आदर सम्मान और अपनेपन की भावना होती थी
          लेकिन लगता है कि आज लोकतंत्र और प्रजातंत्र की वह मजबूत दीवार खोकली हो गई है आज की राजनीति में इमानदारी का तो दूर-दूर तक कोई पता नहीं है न ही कोई सिद्धांत हैं और न ही कोई सेवाभाव. आज स्थिति यह है कि चुनाव लड़ने के लिए धनबल और बाहुबल जिसके पास नहीं है वह आज की तारीख में चुनाव नहीं लड़ सकता है और न ही जीत सकता है लोकतंत्र के लिए बड़ी बिडम्बना है कि आजकल नेता चुनाव जीतने के लिए अपनी योग्यता और देश के लिए अपनी दूरदर्शिता पर बात नहीं करते अपितु इसके विपरीत प्रतिद्वंदी पार्टी के नेता के खिलाफ जहर उगलना, व्यक्तिगत दुष्प्रचार करना, धार्मिक ओर सामाजिक भावनाएं भड़काना, आदि कृत्य प्राथमिकता के साथ चुनाव प्रचार में शामिल किये जाते हैं l
         लोकतंत्र खतरे में है, क्योंकि लोकतांत्रिक तरीके से होने वाले चुनाव में मिलने वाले जनादेश पर जोड़ तोड़ की राजनीति हावी हो चुकी है हर हाल में चुनाव जीतने की लालसा सभी सिद्धांतों और  मूल्यों पर भारी पड़ रही है, आज हालात यह हैं कि चुनाव परिणाम आने के बाद जनादेश के अनुसार जो सबसे बड़ी पार्टी होती है जिसे जनता ने सबसे ज्यादा वोट दिया वह सबसे पीछे खड़ी नजर आ रही है क्योंकि कम सीट पाकर भी धनबल और बाहुबल के माध्यम से राजनीतिक दल जोड़-तोड़ और खरीद फरोख्त करके अपनी सरकार बना लेते हैं
         जोड़-तोड़ और खरीद फरोख्त की राजनीति जनादेश का अपमान तो है ही साथ ही लोकतंत्र और संविधान का भी अपमान है चुनाव की प्रक्रिया के लिए चुनाव आयोग की स्थापना की गई है परंतु चुनाव आयोग भी राजनीतिक दलों के सामने बौना साबित हो रहा है आये दिन देखने में आता है कि सरेआम चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया जाता है और उन लोगों पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाती है दल बदलने वाले नेताओं की चांदी है आजकल जिधर दम उधर हम की इस बेला में नेता बिना पेंदी के लोटे के सामान इधर से उधर लुढ़कते रहते हैं ओर हर हाल में सत्ता सुख पाना चाहते हैं ऐसे नेता लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं इन पर कार्यवाही होना चाहिए परंतु ऐसा हो नहीं रहा है राजनीतिक मूल्य दिन-ब-दिन गिरते चले जा रहे हैं आज के नेताओं के लिए केवल चुनाव जीतना महत्वपूर्ण रह गया है | शाम दाम दंड भेद कैसे भी हो चुनाव जीतना है चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े अगर यही सब कुछ चलता रहा तो लोकतंत्र और जनादेश का क्या औचित्य रह जाएगा यह एक ज्वलंत प्रश्न है |
अजय सिंह राजपूत
   होशंगाबाद  

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