पीएम मोदी की बड़ा सियासी दाव- मस्जिद में वोहरा समाज के कार्यक्रम में हुए शामिल
NE 18 - प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इंदौर आना और बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में शामिल होकर सीधे दिल्ली लौट जाना कई मामलों में खास माना जा रहा है। इसके राजनीतिक निहितार्थ भी ढूंढे जा रहे हैं। वोटों के नजरिए से देखें तो पूरे देश में बोहरा समुदाय की आबादी खास मायने नहीं रखती, लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले इस आयोजन में शामिल होकर मोदी ने एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया है।
जनसंख्या के लिहाज से देखें तो बोहरा समाज की आबादी पूरे देश में लगभग 20 लाख है, जबकि इंदौर में यह 35 हजार के आसपास है। इंदौर के अलावा मध्यप्रदेश में उज्जैन और बुरहानपुर में भी बोहरा आबादी है, जबकि अकेले गुजरात में इनकी संख्या साढ़े चार लाख के आसपास है और इनकी भाषा भी गुजराती है। बोहरा समाज की परंपराएं काफी उदार हैं और वे खुद को शिया समुदाय के करीब मानते हैं। यदि शिया लोगों की बात करें तो इनकी जनसंख्या भारत में 4 करोड़ के आसपास है।
दरअसल, गुजराती नरेन्द्र मोदी ने 20 लाख की आबादी वाले समुदाय के बीच आकर उन 4 करोड़ शिया लोगों को साधने की कोशिश की है, जो आगामी 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभा सकते हैं। मोदी ने अपने भाषण में इमाम हुसैन का जिक्र कर शियाओं को लुभाने की कोशिश की कि इमाम हुसैन की सीख जितनी अहम उनके जमाने में थी, उतनी ही महत्वपूर्ण आज भी है।
सैफीनगर मस्जिद में सैयदना साहब और मोदी की मुलाकात के दौरान जिस तरह उनकी 'कैमिस्ट्री' दिखाई दी उससे न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्कि पूरी दुनिया के बोहरा समुदाय में सकारात्मक संदेश गया होगा क्योंकि इस कार्यक्रम को देखने के लिए पूरी दुनिया में व्यवस्था की गई थी।
मोदी ने खुद को बोहरा समुदाय के परिवार का हिस्सा बताते हुए कहा कि इस समुदाय के लोगों की देशभक्ति और ईमानदारी एक मिसाल है। नियम, कायदे और अनुशासन में रहकर व्यापार को कैसे आगे बढ़ाया जाता है, इस मामले में इन्होंने आदर्श स्थापित किया है। हालांकि किसी मस्जिद में जाने का नरेन्द्र मोदी का यह पहला मौका नहीं है। इससे पहले वे ओमान, इंडोनेशिया, सिंगापुर, अबूधाबी और अहमदाबाद की मस्जिदों में जा चुके हैं।
मोदी यह बताना भी नहीं भूले कि स्वतंत्रता आंदोलन में भी बोहरा समुदाय की अहम भूमिका रही है। सैयदना ताहेर सैफुद्दीन साहब ने गांधीजी के साथ मिलकर सामाजिक मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दांडी यात्रा के दौरान बापू तत्कालीन सैयदना साहब के घर सैफी विला में ठहरे थे। उन्होंने कहा गुजरात में जलसंकट और कुपोषण से लड़ने के लिए भी सैयदना साहब ने काफी सहयोग दिया।
दूसरी ओर मोदी की सैयदना से मुलाकात को चुनावी चंदे से भी जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीति से जुड़े लोगों का मानना है कि चूंकि देश-विदेश में फैला बोहरा समाज व्यापार-व्यवसाय से जुड़ा है और काफी संपन्न भी है, ऐसे में इनसे आगामी चुनावों के लिए अच्छा चंदा इकट्ठा किया जा सकता है। बोहरा समाज के लोग भी मोदी को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि यह पहला अवसर है जब भारत के किसी प्रधानमंत्री ने सैयदना के वाअज में शिरकत की है। कुछ लोग तो यह कहने में नहीं चूके कि हमारी दुआ है कि देश में 50 साल तक मोदीजी की हुकूमत कायम रहे।
जनसंख्या के लिहाज से देखें तो बोहरा समाज की आबादी पूरे देश में लगभग 20 लाख है, जबकि इंदौर में यह 35 हजार के आसपास है। इंदौर के अलावा मध्यप्रदेश में उज्जैन और बुरहानपुर में भी बोहरा आबादी है, जबकि अकेले गुजरात में इनकी संख्या साढ़े चार लाख के आसपास है और इनकी भाषा भी गुजराती है। बोहरा समाज की परंपराएं काफी उदार हैं और वे खुद को शिया समुदाय के करीब मानते हैं। यदि शिया लोगों की बात करें तो इनकी जनसंख्या भारत में 4 करोड़ के आसपास है।
दरअसल, गुजराती नरेन्द्र मोदी ने 20 लाख की आबादी वाले समुदाय के बीच आकर उन 4 करोड़ शिया लोगों को साधने की कोशिश की है, जो आगामी 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभा सकते हैं। मोदी ने अपने भाषण में इमाम हुसैन का जिक्र कर शियाओं को लुभाने की कोशिश की कि इमाम हुसैन की सीख जितनी अहम उनके जमाने में थी, उतनी ही महत्वपूर्ण आज भी है।
सैफीनगर मस्जिद में सैयदना साहब और मोदी की मुलाकात के दौरान जिस तरह उनकी 'कैमिस्ट्री' दिखाई दी उससे न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्कि पूरी दुनिया के बोहरा समुदाय में सकारात्मक संदेश गया होगा क्योंकि इस कार्यक्रम को देखने के लिए पूरी दुनिया में व्यवस्था की गई थी।
मोदी ने खुद को बोहरा समुदाय के परिवार का हिस्सा बताते हुए कहा कि इस समुदाय के लोगों की देशभक्ति और ईमानदारी एक मिसाल है। नियम, कायदे और अनुशासन में रहकर व्यापार को कैसे आगे बढ़ाया जाता है, इस मामले में इन्होंने आदर्श स्थापित किया है। हालांकि किसी मस्जिद में जाने का नरेन्द्र मोदी का यह पहला मौका नहीं है। इससे पहले वे ओमान, इंडोनेशिया, सिंगापुर, अबूधाबी और अहमदाबाद की मस्जिदों में जा चुके हैं।
मोदी यह बताना भी नहीं भूले कि स्वतंत्रता आंदोलन में भी बोहरा समुदाय की अहम भूमिका रही है। सैयदना ताहेर सैफुद्दीन साहब ने गांधीजी के साथ मिलकर सामाजिक मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दांडी यात्रा के दौरान बापू तत्कालीन सैयदना साहब के घर सैफी विला में ठहरे थे। उन्होंने कहा गुजरात में जलसंकट और कुपोषण से लड़ने के लिए भी सैयदना साहब ने काफी सहयोग दिया।
दूसरी ओर मोदी की सैयदना से मुलाकात को चुनावी चंदे से भी जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीति से जुड़े लोगों का मानना है कि चूंकि देश-विदेश में फैला बोहरा समाज व्यापार-व्यवसाय से जुड़ा है और काफी संपन्न भी है, ऐसे में इनसे आगामी चुनावों के लिए अच्छा चंदा इकट्ठा किया जा सकता है। बोहरा समाज के लोग भी मोदी को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि यह पहला अवसर है जब भारत के किसी प्रधानमंत्री ने सैयदना के वाअज में शिरकत की है। कुछ लोग तो यह कहने में नहीं चूके कि हमारी दुआ है कि देश में 50 साल तक मोदीजी की हुकूमत कायम रहे।
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