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23.80 लाख रुपए की लागत से बने अमृत सरोवर में नहीं रुकता पानी, अनुपयोगी साबित हो रहा तालाब

अमृत सरोवर योजना को पलीता लगाते कर्मचारी
बेलखेड़ी शेढ पंचायत का मामला

नरसिंहपुर/गोटेगांव:- गोटेगांव जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत बेलखेड़ी शेढ में पिछले वर्ष शासन की महत्वाकांक्षी अमृत सरोवर योजना के तहत लगभग 23.80 लाख रुपए की लागत से तालाब का निर्माण किया गया था। योजना का उद्देश्य वर्षा जल संग्रहण, भू-जल स्तर बढ़ाने और ग्रामीणों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक करना था, परंतु निर्माण की गुणवत्ता में कमी और स्थान चयन में गंभीर त्रुटियों ने इस पूरे प्रयास को विफल कर दिया।

*तालाब में पानी रोकने की क्षमता शून्य, सालभर रहा सूखा*
स्थानीय ग्रामीणों और पंचायत सचिव पूरनलाल मेहरा के अनुसार तालाब को ऐसे स्थान पर बनाया गया, जहाँ पहले से ही कई गहरी खुदाई के गड्ढे मौजूद थे। बारिश का पानी पहले इन गड्ढों में भर जाता है और कुछ ही दिनों में जमीन में समा जाता है, जिसके कारण तालाब तक पानी पहुँच ही नहीं पाता।
इसके अलावा तालाब के पास से गुजरने वाली शेढ नदी भी पानी के ठहराव में बाधा बनती है। नदी के प्रवाह और स्थलाकृति के कारण तालाब का जल लंबे समय तक रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है।

सचिव मेहरा ने बताया कि लगभग दो वर्ष पहले आई बाढ़ में यह तालाब टूट भी गया था। बाद में मरम्मत तो की गई, लेकिन पानी टिकने की समस्या आज भी जस की तस है। वर्तमान में तालाब का उपयोग केवल मवेशियों के पानी पीने तक ही सीमित रह गया है।

*23.80 लाख रुपए की राशि व्यर्थ जाने के आसार*
तालाब का उपयोग न हो पाने के कारण सरकारी धनराशि पूरी तरह व्यर्थ साबित होती दिख रही है। सचिव मेहरा ने बताया कि पंचायत में ऐसे अन्य उपयुक्त स्थल मौजूद थे जहाँ बेहतर तालाब निर्माण संभव था। किंतु यह तालाब उनके कार्यकाल से पहले ही बन चुका था, इसलिए स्थान चयन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।

*इंजीनियरिंग विभाग पर उठे सवाल*
ग्राम पंचायतों में तालाब निर्माण से पूर्व इंजीनियरों द्वारा स्थल जांच, मिट्टी परीक्षण, जलस्तर और वर्षा जल प्रवाह मार्ग का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक होता है। ऐसे में ग्रामीणों के बीच यह बड़ा प्रश्न उठ रहा है कि—
आखिर किस इंजीनियर की सिफारिश पर इस अनुपयुक्त स्थल का चयन किया गया?
योजना की भावना को धक्का पहुँचाते हुए लाखों रुपए की सरकारी राशि ऐसे प्रोजेक्ट पर खर्च कर दी गई, जो शुरू से ही अव्यवहारिक और अनुपयोगी था। ग्रामीण अब इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं ताकि जिम्मेदारों पर कार्रवाई हो सके और भविष्य में इस तरह की लापरवाही दोबारा न हो।

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