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मंडीदीप में विभिन्न ईकाइयों में कार्यरत युवा श्रमिक बिभिन्न परेशानियों के चलते पैदल घरों को जाने मजबूर

रायसेन/ओबेदुल्लागंज- 25 अपैल 2020 (सत्येन्द्र पांडेय)- जीवन की जिजीविषा किसी भी महामारी से हमेशा ही बड़ी होती है। जीवन का संघर्ष किसी भी प्रशासन या किसी भी नियम से बांधना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
     औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप में विभिन्न ईकाइयों में कार्यरत युवा श्रमिक जो लाकडाऊन के अभी तक के दिनों तक कुछ बेहतर होने की आस में अपना ठिकाना मंडीदीप या परिसर में ही बनाये हुए थे। लेकिन प्रशासन के कठोर निर्देशों सहित प्रारंभ हुऐ उद्योगों ने अपनी विवशता को सामने रख इन सभी श्रमिकों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
     बिना आमदनी लगभग 30 दिनों से जीवन यापन करते ये सभी श्रमिक सारे कष्टों को एक ओर रख कर चल पड़े हैं अपने घर की ओर। उन्हे दूरी का कोई डर नहीं है और नाही पैदल चलने से कोई परेशानी। लक्ष्य केवल एक है किसी भी भांति घर तक पहुंचना।
ये तस्वीरें हैं राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित औबेदुल्लागंज से गुजरते हुऐ इन कामगारों को जिन्हे जबलपुर तक का रास्ता तय करना है।
     बड़ा सवाल यह है कि कहीं लाक डाउन और कहीं टोटल लाक डाउन के शहरों कस्बों से गुजरते ये सभी लोग क्या प्रशासन को नहीं दिख रहे। यदि दिख रहे हैं तो वे इन्हें सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचाने में तत्परता क्यों नही दिखा रहा। रोजगार ना छीनने के सरकार के दावे और सहानुभूति का दर्द भी इनकी आंखों में दिखाई देता है। भले यह अपने प्रबंधन को दोषी ना कहें पर बमुश्किल मिले रोजगार को छोड़ कर कोई यूं ही नहीं चल देता।
     50 से 70 लोगों के समूह में चलते ये सभी लोग एक दूसरे का सहारा बने चल रहे हैं और उन्हें किसी भी संक्रमण का कोई भय नहीं है और न ही भूख और प्यास की चिंता है। राह में कोई मदद का प्रयास भी करता है तो वे इस भय से मना कर देते हैं कहीं कोई रोक ना ले। महामारी के दुष्परिणामों का प्रबंधन और सही कदम हर सरकार और हर नियोक्ता की प्राथमिकता होनी चाहिए।

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