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स्कूल में लगा ताला कैसे पढ़ेगा इंडिया कैसे बढ़ेगा इंडिया

पढ़ेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया सुनने में नारा अच्छा लगता है लेकिन जब स्कूल में ताला लगा हो तो कैसे पढ़ेगा इंडिया।
मोदी सरकार का नारा है कि पढ़ेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया, लेकिन जब स्कूल में शिक्षक पदस्थ होने के बावजूद सालों तक स्कूल का ताला ही ना खोलें, तो कैसे पढ़ेगा इंडिया और कैसे बढ़ेगा इंडिया यह एक बड़ा सवाल है।
आज हम आपको मध्य प्रदेश के ऐसे स्कूल की तस्वीर दिखाने जा रहे हैं जहां सालों से पदस्थ शिक्षक स्कूल ही नहीं आते, और यदि स्कूल आ भी जाएं तो खानापूर्ति करके वापस लौट जाते हैं।
स्कूल की आंगन में धूल की मोटी परत खुद ही स्कूल के हालातों को बयान कर रही है।
डिजिटल इंडिया के दौर में यह तस्वीरें मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े करती है, मोटी मोटी तनख्वाह पाने वाले शिक्षक किस तरह बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं, यह मामला सिर्फ इसकी बानगी भर है।
पूरे देश में ऐसे न जाने कितने स्कूल है, जिन पर जड़ा ताला स्कूल चले अभियान को ग्रहण लगा रहा है।
नरसिंहपुर के आदिवासी ग्रामीण अंचल के आदिवासी बच्चों का भविष्य किस तरह गर्त में गिर रहा है शायद ही प्रशासन को इसकी भनक हो लेकिन हकीकत यही है।
नरसिंहपुर के बिनेकी का यह प्राथमिक स्कूल कभी खुलता ही नहीं है, यहां पढ़ने के लिए बच्चे तो है पर उन्हें पढ़ाने वाले स्कूल में पदस्थ शिक्षक कभी नहीं आते, रजिस्टर में खुद की आमद दर्ज करनी हो तो महीने में 1 दिन आकर खानापूर्ति कर चले जाते हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि पिछले 2 साल से उन्होंने कम ही बार स्कूल का ताला खुलते देखा है, आखरी बार शिक्षक कब स्कूल में आए थे अब उन्हें याद भी नहीं है। कई बार शिकायत भी की लेकिन शिकायत करने पर उल्टा शिक्षकों द्वारा धमकी अलग दे दी जाती है।
और भोले भाले आदिवासी, बच्चों के भविष्य के साथ हो रहे खिलवाड़ को देख मन मसोसकर रह जाते हैं।
स्कूली बच्चों को पांचवी क्लास तक पहुंचने के बाद भी ककहरा तक नहीं आता है, आए भी तो कैसे जब पढ़ना पढ़ाना सिर्फ सरकारी दफ्तरों की फाइलों तक सीमित हो, तो फिर आखिर इनसे अनार का, आम का आए भी तो कैसे। बच्चे बताते हैं कि मास्टर जी कभी आते ही नहीं, हम पढ़े भी तो कैसे।
स्कूल के बाजू में संचालित आंगनबाड़ी की प्रभारी बताती हैं कि बच्चों का भविष्य बेहद अंधकार में है, क्योंकि स्कूल कभी खुलता ही नहीं है, हालांकि बच्चे रोज स्कूल तक पहुंचते हैं, और आंगनबाड़ी केंद्र में मध्यान भोजन खाकर वापस लौट जाते हैं।
कई बार शिकायतें की गई, लेकिन हर बात ढाक के तीन पात की कहावत बिनेकी के स्कूल में चरितार्थ होती नजर आती है।
पहाड़ी अंचल में बसे बिनेकी गांव में दुर्गम कच्चे रास्ते की वजह से इस स्कूल की कभी मॉनिटरिंग नहीं हो पाती और यही वजह है कि यहां पदस्थ शिक्षक मुख्यालय में ना रह कर आसपास के शहरी क्षेत्रों से आते हैं, जिला शिक्षा अधिकारी के संज्ञान में मामला आने पर अब वह कार्यवाही की बात कह रहे हैं।

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