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महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत हासिल करना भेंसे से दूध दुहने जैसा- सामना

महाराष्ट्र राजनीति- भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता प्राप्त करने के लिए आचार और नीति को ताक पर रख दिया है। सत्ता के लिए उनकी किसी भी स्तर पर जाने की तैयारी है। लेकिन कुछ भी हो जाए, वे विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाएंगे। अब भाजपा को बहुमत मिलना मतलब भैंसे से दूध दुहने जैसा है। अजीत पवार के रूप में उन्होंने एक भैंसे को अपने बाड़े में लाकर बांध दिया है और भैंसे से दूध दुहने के लिए ‘ऑपरेशन कमल’ योजना बनाई है। यही लोग सत्ता ही उद्देश्य नहीं है ऐसा प्रवचन झाड़ते हुए नैतिकता बघार रहे थे। अब तुम्हारे पास बहुमत है ये देखकर ही राज्यपाल ने शपथ दिलाई है, ऐसा तुम कह रहे हो न? तो फिर ‘ऑपरेशन कमल’ जैसी ‘उठाईगीरी’ क्यों? हम उन्हें इस उठाईगीरी और भैंसागीरी के लिए शुभकामनाएं देते हैं। आज राज्य में हर तरफ भाजपा की थू-थू हो रही है। भैंसे की गंदगी भाजपा के स्वच्छ और पारदर्शक जैसे चेहरे पर उड़ने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बेचैन हो गए होंगे। फडणवीस और उनके लोग इस भ्रम में थे कि अजीत पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस को तोड़कर २५-३० विधायकों को लेकर भाजपा के बाड़े में आ जाएंगे। अजीत पवार की यह कथित बगावत बालू पर गधे के मूतने पर हुई गंदगी जैसी हो गई है। महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है उसे ‘नाटक’ कहना रंगमंच का अपमान है। हाथ में सत्ता है, जांच एजेंसियां हैं, भरपूर काला पैसा है और इसके दम पर राजनीति में मनचाहा उन्माद लाने की कोई सोच रहा होगा तो ये शिवराय के महाराष्ट्र का अपमान है। वास्तव में महाराष्ट्र में फिलहाल जो राजनीतिक अस्थिरता है, वो भारतीय जनता पार्टी के कारण, उनकी व्यावसायिक वृत्ति के कारण और फंसाने की कला के कारण है। पहले उन्होंने शिवसेना जैसा मित्र खो दिया और अब वे शातिर चोर की तरह रात के अंधेरे में अपराध कर रहे हैं। सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में राज्यपाल के समक्ष भाजपा के पास सरकार बनाने का मौका था। राज्यपाल उन्हीं की पार्टी और उन्हीं की नीति के होने के कारण मा. भगतसिंह कोश्यारी ने भाजपा के नेताओं को निमंत्रित किया ही था। उन्होंने नकार दिया। शिवसेना को बुलाया गया। लेकिन सरकार बनाने के लिए २४ घंटे भी नहीं दिए गए। इसलिए पर्दे के पीछे जो तय किया गया था उसके अनुसार राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लाद दिया। ऐसे समय में समविचारी न होने के बावजूद महाराष्ट्र के हितार्थ शिवसेना सहित कांग्रेस-राष्ट्रवादी पार्टियों के एक साथ आकर सरकार बनाने की प्रक्रिया के दौरान भाजपा के दिल की धड़कन बढ़ गई और उन्होंने रातों-रात अजीत पवार से हाथ मिलाकर शपथ ग्रहण समारोह कर लिया। यह सब खिलवाड़ तो है ही, साथ ही महान महाराष्ट्र की परंपरा पर कालिख पोतने जैसा भी है। इंदिरा गांधी द्वारा घोषित किए गए आपातकाल को काला दिवस के रूप में मनाने का ढोंग भाजपा अब न करे। राष्ट्रपति भवन और राजभवन का इतना दुरुपयोग देश में उस समय भी नहीं हुआ था। महाराष्ट्र ठीक से जागा भी नहीं था कि उसी दौरान अलसुबह फडणवीस और अजीत पवार ने राजभवन में जाकर शपथ ली। हो सकता है वे बिना नहाए ही पहुंच गए हों। लेकिन राजभवन में सभी ने लोकतंत्र के नाम का स्नान किया। इन सभी बातों को एक तरफ रखकर किसी उठाईगीर और चोर की भांति महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने शपथ ली। इस समारोह में खुद के मेहमान तो छोड़िए परंपरानुसार पहुंचनेवाले अधिकारी भी उपस्थित नहीं थे। राज्यपाल विधायकों के पत्र और उनके हस्ताक्षरों के बिना सरकार बनाने का निमंत्रण नहीं देते। शिवसेना के साथ ऐसा ही हुआ। लेकिन अजीत पवार पार्टी कार्यालय से चोरी करके लाए गए हस्ताक्षर किए हुए पत्र राज्यपाल को दिखाते हैं और राज्यपाल उन कागजों पर विश्वास करते हुए फडणवीस और अजीत पवार को शपथ दिला देते हैं। ये हेरा-फेरी की पराकाष्ठा है। निर्लज्जता जैसे शब्द का प्रयोग करके हमें इस संस्था का अपमान नहीं करना है। कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी की आनेवाली सरकार नैतिक या अनैतिक की बात छोड़ो लेकिन देवेंद्र फडणवीस और उनकी पार्टी ने ये किसको जन्म दिया है? सिर गधे का और धड़ भैंसे का ऐसा प्रारूप महाराष्ट्र के माथे पर मारकर ये लोग एक-दूसरे को लड्डू खिलाते हैं। लेकिन लड्डू खिलाते समय वो उनके गले के नीचे नहीं उतर रहा था और उनके चेहरे पर आनंद के भाव भी नहीं थे। असली सवाल ये है कि ये लड्डू उन्हें हजम होंगे क्या और इसका उत्तर है नहीं। ‘अजीत पवार को जेल में चक्की पीसने के लिए भेजेंगे’, ऐसा कहनेवाले भक्तगण ‘फडणवीस, अजीत पवार आगे बढ़ो’ की नारेबाजी कर रहे थे। लेकिन अजीत पवार उस जल्लोष में कहीं नहीं दिखाई दे रहे थे। क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस और महाराष्ट्र की जनता ‘अजीत पवार मुर्दाबाद’ की नारेबाजी कर रही है। सच ये है कि अजीत पवार की बगावत असफल हो गई है और उनका भ्रम टूट चुका है। अजीत पवार के साथ १२ विधायक गए। उनमें से ९ विधायक वापस लौट आए। शरद पवार ही नेता हैं और राष्ट्रवादी कांग्रेस तथा महाराष्ट्र को ही हम मानते हैं। ८० वर्षीय शरद पवार ने विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाई ही लेकिन शिवसेना के साथ कांग्रेस सहित सत्ता बनाने के लिए कदम उठाए। इस दौरान अजीत पवार नामक रोड़ा भाजपा ने फेंका। लेकिन उन्होंने उसे भी दूर कर दिया। इससे भाजपा का मुखौटा उतर गया। मतलब भाजपा के चेहरे पर इतने मुखौटे हैं कि एक मुखौटे के उतरते ही दूसरा मुखौटा वहां रहता ही है। इसलिए मुखौटे उतरते रहते हैं फिर भी असली चेहरा सामने नहीं आता। महाराष्ट्र की जनता इन सारे मुखौटों को उतार फेंकेगी। २५ वर्षों की दोस्ती को न निभानेवाले लोग अजीत पवार का भी पतन कर देंगे। भाजपा के साथ जाकर अजीत पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायकों को फंसाया है। भाजपा ने अजीत पवार को फंसाया और सबने मिलकर महाराष्ट्र को फंसाया। इस धोखाधड़ी में राजभवन का दुरुपयोग हुआ। ये पाप है। लेकिन पाप-पुण्य की बजाय जिनके लिए सत्ता महत्वपूर्ण है, ये उनका आखिरी दौर है। थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए।

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