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महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों को अपने बिधायकों को संभालना पड़ रहा भारी- सभी को फाइव स्टार होटलों में भेजा

महाराष्ट्र राजनीति- महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस एकजुट हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सभी विधायकों से मिलकर उन्हें साथ रखने की पूरी कोशिश में जुटे हुए हैं। मगर, तीनों दलों को भीतरघात का डर भी सता रहा है। इसी कारण तीनों पार्टियों ने अपने विधायकों को अलग-अलग होटल में भेज दिया है। पार्टी रणनीतिकार इन संभावनाओं से इनकार नहीं कर रहे हैं कि विधानसभा में विश्वासमत के दौरान कुछ विधायक पाला बदल सकते हैं।
     कांग्रेस का मानना है कि महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। महाराष्ट्र कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि विश्वासमत पर मतदान के वक्त अंदर क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का समर्थन करने वाले उपमुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी पर अच्छी पकड़ रही है। ऐसे में कितने विधायक उनके साथ जाएंगे, यह कोई नहीं जानता।
     प्रदेश कांग्रेस नेताओं का कहना है कि विश्वासमत के दौरान पाला बदलने से विधायकों को सदस्यता खोने का बहुत अधिक डर नहीं रहा है। क्योंकि, कर्नाटक में अयोग्य ठहराए गए कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों को भाजपा ने चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है। इस स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष भी भाजपा का ही होगा और ऐसे में विधायकों की अयोग्यता पर निर्णय में भी वक्त लग सकता है।
     शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस विधानसभा में मतदान की मांग कर रही है। महाराष्ट्र कांग्रेस के एक नेता ने कहा, हम चाहते हैं कि विधानसभा में विश्वासमत के दौरान वोटिंग की वीडियोग्राफी भी की जाए, ताकि हमें यह पता चल सके कि कितने विधायकों ने पाला बदला है। कितने विधायकों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। उन विधायकों के खिलाफ हम कार्रवाई कर सकेंगे।  उधर, एनसीपी यह दावा कर रही है कि उप मुख्यमंत्री अजित पवार के साथ गए कई विधायक वापस लौट आए हैं, जबकि कई विधायक उसके संपर्क में हैं। एनसीपी का दावा है कि उसके पास 49 विधायक हैं। यह आंकड़ा बहुमत से सिर्फ चार अधिक है। ऐसे में चार-पांच विधायक भी इधर-उधर हुए, तो पासा पलट सकता है। चुनाव में शिवसेना को 56, कांग्रेस को 44 और एनसीपी को 54 सीट मिली हैं।
इन दलों की भूमिका भी अहम
विश्वासमत के दौरान ऑल इंडिया मजलिस-ए -इत्तेहादुल मुस्लमिन, प्रहर जनशक्ति पार्टी और समाजवादी पार्टी के विधायकों की भूमिका भी अहम होगी। अगर, ये विधायक मतदान में हिस्सा नहीं लेते हैं तो बहुमत का आंकड़ा कम हो जाएगा। इससे भाजपा के लिए बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचना और आसान होगा। वहीं, भाजपा पहले से यह दावा कर रही है कि उसे निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है।

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