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पूरे राजकीय सम्मान के साथ जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को दी गई अंतिम विदाई


नरसिंहपुर/परमहंसी:-12 सितंबर 2022 (मोहन सिंह राजपूत)- जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का विगत दिवस 99 बर्ष की आयु में निधन हो गया, वे काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे।
द्वारिका शारदा एवं ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का 99 वर्ष की उम्र में निधन हो गया, उन्होंने नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली, वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितम्बर 1924 को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था, उनके पिता धनपति उपाध्याय और मां गिरिजा देवी ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था।
बचपन से ही वे सनातन संस्कृति से प्रभावित थे, 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर वार छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं।
इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी श्री करपात्री महाराज से वेद शास्त्रों की शिक्षा ली, यह वह समय था जब भारत पर अंग्रेजों का राज था, और भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने के लिए लड़ाई लड़ी जा रही थी।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को मिली शंकराचार्य की उपाधि:
    1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो महाराज जी भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े, और 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए।
इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी।
वे करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे, बर्ष 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए, उन्हें शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा प्राप्त हुई, और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।
बर्ष 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली।
दो मठों के शंकराचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती:
हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 वर्ष पूर्व भारत के चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां (गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ) बनाईं।
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे, शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं।
आज सनातन संस्कृति के एक अध्याय का सूर्य अस्त हो गया, महाराज जी के जाने से उनके भक्त ही नहीं सम्पूर्ण विश्व मे शोक की लहर है, सभी उनके जाने से दुखी थे, और ईश्वर से उन्हें अपने श्री चरणों में उच्च स्थान प्रदान करने की प्रार्थना कर रहे थे।
ज्ञातव्य हो कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का विगत दिवस सायं लगभग 3.30 बजे देवलोक गमन हो गया था, जिनका पार्थिव शरीर परमहंसी गंगा आश्रम में भक्तों के दर्शनार्थ रखा गया।
दर्शन का समय प्रातः 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक था, महाराज जी के अंतिम दर्शन करने लाखों की संख्या में उनके भक्त बड़ी संख्या में परमहंसी गंगा आश्रम पहुँचे।
वेद मंत्रो के उच्चारण के बीच पूरे विधि विधान के साथ शंकराचार्य जी का अंतिम संस्कार किया गया।
उनके पार्थिव शरीर को पूरे राजकीय सम्मान के साथ परमहंसी आश्रम में स्थित भगवती उद्यान में समाधि दी गई।
समाधि से पूर्व मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, फग्गनसिंह कुलस्ते, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजयसिंह, सुरेश पचौरी, सांसद विवेक तनखा, जबलपुर के महापौर जगतबहादुर सिंह अन्नू सहित कई बड़ी राजनीतिक हस्तियां मौजूद रहीं।
जैसे ही महाराज जी की अंतिम यात्रा प्रारंभ हुई, उनके भक्त भावुक हो उठे, भक्त हाथों में पुष्प लिए उन्हें श्रद्धांजलि देने आतुर दिखे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि महाराज जी का संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाए, जिसके लिए उन्होने नरसिंहपुर कलेक्टर को आवश्यक निर्देश दिए।
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने महाराज जी का जाना सनातन संस्कृति के लिए एक अपूर्णीय क्षति बताया।
इस बीच महाराज जी के जाने से द्वारका एवं शारदा पीठ के शंकराचार्य के पद रिक्त हो गए, जिन्हें महाराज जी की इक्षा के अनुरूप उनके दोनों शिष्य दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, और दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती को एक एक पीठ का भार सौंपा गया।
परमहंसी आश्रम से अपनी धार्मिक यात्रा प्रारंभ करने वाले बालक पोथीराम से लेकर जगत गुरु शंकराचार्य तक का सफर तय करने वाले स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने अंतिम सांस भी परमहंसी गंगा आश्रम में ही ली, वैसे तो उनके देशभर में कई आश्रम थे, लेकिन उन्हें परमहंसी गंगा आश्रम ही सबसे अधिक प्रिय था।
न्यूज़ एक्सप्रेस एटीन परिवार भी महाराज श्री के जाने से दुःखी है, और उन्हें अपनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
न्यूज़ एक्सप्रेस एटीन के लिए नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम से एडिटर इन चीफ मोहन सिंह राजपूत की रिपोर्ट

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