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संकल्प में विकल्प नहीं होता और संकल्प में विकल्प खोजा गया तो महानतम कार्य रूक जाते हैं-श्री प्रहलाद पटैल


NewsExpress18_ 27 दिसम्बर 2020:- श्री श्री बाबा श्री जी के अवतण दिवस पर विशेष’’ 27 दिसंबर 2020

कहते है गुरु की कृपा जिस पर हो जाती है, उसे दुनिया की हर वह वस्तु जो वह चाहता है, या पाने की कामना करता है, सहज ही प्राप्त हो जाती है।

ऐसे ही गुरु श्री श्री बाबा श्री जी का अवतरण दिवस 27 दिसम्बर को उनके बताए मार्ग पर चलने वाले निर्विकार पथिक बड़े ही उत्साह एवं श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं।


श्री श्री बाबा श्री जी के अनन्य भक्त और पथिक केद्रींय संस्कृति व पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सरकार श्री प्रहलाद सिंह पटैल ने अपने अनुभव सांझा किये।

उन्होंने बताया कि सन् 1985 का वर्ष एक परिक्रमावासी दिव्यमूर्ति के दर्शन और फिर नवरात्रि पर्व में सत्संग, और चल पड़ा श्री निर्विकार पथ पर पथिक। बलिप्रथा की पूर्वजों की परम्परा के बाद भी आहार के संयम का संकल्प लिया जो परम पूज्य श्री श्री बाबा श्री जी की कृपा से आज भी संकल्पवान होकर पूर्ण हो रहा है। मां नर्मदा जी की कृपा से मिला सत्संग व विधियां।


’’विधियां ही निधियां हैं’’- परम पूज्य श्री श्रीबाबाश्री।

विधियां क्या हैं? तो वह हैं प्रातः उठने से लेकर शयन तक की नियमित चर्या। जो आपके लोक व्यवहार में बाधक नहीं है। पर परम पूज्य श्री श्रीबाबाश्री जी की वाणी है- ’’संकल्प में विकल्प नहीं होता और संकल्प में विकल्प खोजा गया तो महानतम कार्य रूक जाते हैं।’’

आज संपूर्ण जगत में शांति को लेकर चर्चा है, स्वास्थ्य को लेकर चिंता है। अनेक धर्म ग्रंथ पूजा, पद्वतियां आदि देने का निर्देश देती है, पर संघर्ष एवं चिंता कम होती नहीं दिखती। भारत समस्याओं के समाधान के लिये जाना जाता है। हमारी सनातन परम्पराओं ने अनेक उतार चढ़ाव देखें, समयकाल परिस्थिति के अनुसार सत्संगों व शास्त्रों के माध्यम से निदान प्रस्तुत किये। जो वेद से लेकर पुराण शास्त्रों तक अनेक धार्मिक पुस्तकों में संभावित मिला तो है। भारत की भूमि पर प्रगट धर्मों में बौद्व, जैन, सिख जैसे धर्मों में चर्या एवं सेवा कार्यों की परम्परा को मजबूत किया।

     लेकिन शंकराचार्य की परम्परा के बाद अनेक परिवर्तन हुए, सनातन की परम्परा में आचार्य परम्परा के साथ अनेक फक्कड़ों, अवधूतों, सहंग परम्परा का उल्लेख मिलता है। शास्त्रों में जिन बातों का उल्लेख मिलता है वह हैं गूढ़ व कीलित व्यवस्थायें। जो साधक ही प्राप्त कर सकता है या उसकी व्याख्या कर सकता है। लेकिन शास्त्रार्थ की शंकराचार्य जी की परम्परा जो एक युग (12वर्ष) में कुम्भ के प्रमाप से चलती थी। उसमें जो कमियां आई, आचार्य पीठों में तालमेल की कमी से। सनातन की परम्पराओं के बीच लोकाचार एवं लोकव्यवहार में पैदा हुए भ्रमो का त्वरित समाधान प्रस्तुत करने में कठिनाई पैदा की। परिणामस्वरूप धन, वैभव व भौतिकता के आधार पर धर्म परिभाषित होने लगा, ऐसा प्रतीत होता है।

     श्री निर्विकार पथ की विधियां इसी गूढ़ एवं कीलित देववाणियों का प्रगटीकरण हैं। जो पथिक को आहार संयम के बाद मिलती है। जो समयबद्व इसे पूरा करता है उसके जीवन में परिवर्तन का साथी पथिक है। जो न चल सका लोकाचार के दबाववश, वह भी विधियों की महत्ता कम नहीं कर सका। वर्तमान में यह निधियां जन जन तक पहुचे, पात्रों तक पहूंचे। यह क्रम बना रहे, अवतरणदिवस एवं गुरूपूर्णिमा इस प्रयोग का सहज दिन है। जब पथिकों के अलावा सभी को आसनों पर दर्शन, प्रवेश एवं सत्संग मिल पाता है। अन्य समय पर परमपूज्य श्री श्रीबाबाश्री जी से सत्संग के लिये उनकी अनुमति जरूरी रही है। वर्षों से (1989 से) निराहार एवं सिर्फ मां नर्मदा के जल पर जो न्यूनतम है, वायु के सहारे हैं, अभी मुम्बई में हैं। हम चित्र के सामने उनकी उपस्थिति में विश्वास कर सत्संग व पूजन करेगें। यह अवतरण दिवस अशेष है, विशेष है।

श्री श्रीबाबाश्री जी के चरणों में नमन्।।

पथिक प्रहलाद सिंह पटेल, केद्रींय संस्कृति व पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सरकार

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