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अमर शहीद राजा डेलन शाह की कर्मभूमि में बूंद बूंद पानी को तरस रहे लोग

तेंदूखेड़ा/19 मई 2020 (आदित्य नायक)- भारत की धरती, त्याग और बलिदान की धरती है। इस पवित्र माटी की रक्षा करने के लिये न जाने कितने असंख्य वीरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
ऐसे ही बलिदानी राजा डेलन शाह की जन्मभूमि, ढिलबार आज बूंद बूंद पानी को तरस रही है।
कोरोना संकट के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में अब पानी का संकट गहराने लगा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लोग दो से तीन किलोमीटर दूर से कुएं से पानी भरकर लाने मजबूर हैं।
एक और लॉक डाउन के बीच जहां लोगो से घर में रहने की अपील की जा रही है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट गहराने लगा है, आजादी के 70 बर्ष बाद भी ऐसे कई गांव है जहाँ के लोग मूल भूल सुबिधाओं के लिए तरस रहे हैं।
आज भी ऐसे कई गाँव हैं जहाँ लोग घर मे रहने की बजाय तपती धूप में दो से तीन किलोमीटर दूर खेत के कुएं से पानी लाने को मजबूर है।
ये तस्वीर है नरसिंहपुर जिले के चांवरपाठा ब्लॉक के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत ढिलबार की, जहां के लोग पीने के पानी की एक एक बूंद के लिए तरस रहे हैं।
यह गांव 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाले राजा डेलन शाह, नरवर शाह की जन्मभूमि है,
1857 की क्रांति का विगुल फूंकने वाले राजा डेलन शाह नरवर शाह का गांव आज मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है।
यहां के लोग गांव के बाहर खेतों में बने पुराने कुओं से सिर पर रखकर या साइकिलों पर कुप्पो में भरकर पानी लाते हैं, ग्रामीण दिन में मजदूरी करते है, मजदूरी के बाद खेतों में बने कुओं से पानी ढोते हैं।
वैसे तो गांव में सत्तर से अस्सी हेण्ड पम्प लगे है, लेकिन पानी किसी से भी नहीं निकलता, भूजल स्तर गिर जाने के कारण इन नलो से सिर्फ हबा ही निकलती है।
ग्रामीणों का कहना है कि शासन द्वारा केवल आश्वासन ही दिए जाते हैं, वर्षो से हम इन्ही हालातो में जीवन जी रहे है, लेकिन हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं।
जमीनी जल स्तर बढाये जाने की दिशा मे मुख्यमंत्री सरोवर योजना के तहत एक करोड छः लाख की लागत से तालाब का निर्माण कराया गया, लेकिन यहां भी भ्रष्टाचार रूपी राक्षस ठेकेदार के रूप में प्रकट हो गया, और भ्रष्टाचार की भेंट चढा तालाब पहली ही बारिश में पानी मे बह गया।
वहीं सदियों पुराना तालाब जो लोगो का सहारा होता था, जिसे ठेकेदारों ने एक तरफ से खोद डाला, नतीजा यह निकला कि नए तालाब में एक बूंद भी पानी नहीं है, ग्रमीणों का कहना है कि इंसानो के साथ अब पशुओं को भी पानी की एक एक बूंद के लिए तरसना पड़ रहा है।

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