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जगद्गुरु शंकराचार्य ने बताया छठ पर्व का महत्व

परमहंसी गोटेगांव- कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल को मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है।
यह चार दिनों का त्योहार है और इसमें साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है. इस व्रत को करने के नियम इतने कठ‍िन हैं, इस वजह से इसे महापर्व अौर महाव्रत के नाम से सम्बोधित किया जाता है.
कौन हैं छठी मइया
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर, भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए किसी भी पवित्र नदी या तालाब के किनारे यह पूजा की जाती है।
षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. इस व्रत को करने से संतान की लंबी आयु का वरदान मिलता है.
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्ट‍ि की अध‍िष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं.
नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में ज्योतिष एवं द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने छठ महापर्व का महत्व बताया। छटी माता कात्यायनी का स्वरूप है, छटी पर्व पर सूर्य उपासना का विशेष महत्व बताया।
उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य ने प्राचीन परंपरा को पुनः स्थापित कर धर्म शास्त्रों के विभिन्न उपासना की विधि का विधान बताया।
न्यूज एक्सप्रेस एटीन के लिए परमहंसी गंगा आश्रम से मोहन सिंह राजपूत की रिपोर्ट

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