राष्ट्रपति ने किए हस्ताक्षर - तीन तलाक अध्यादेश को मिली मंजूरी
बुधवार को मोदी कैबिनेट की बैठक में तीन तलाक बिल पर अहम निर्णय लेते हुए इस अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी तीन तलाक बिल के मूल विधेयक को लोकसभा द्वारा पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है और यह राज्यसभा में लंबित है राज्यसभा में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है इस वजह से राज्यसभा में यह बिल पास नहीं हो सका था तीन तलाक पर मोदी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार देर रात इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।
केंद्र सरकार को अब यह बिल 6 महीने में पास कराना होगा यह अध्यादेश अब 6 महीने तक लागू रहेगा भारतीय संविधान में किसी बिल को पास कराने के लिए अध्यादेश का रास्ता बताया गया है किसी विधेयक को लागू करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है संविधान के आर्टिकल 123 के अनुसार जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो तब राष्ट्रपति केंद्र के आग्रह पर कोई अध्यादेश जारी कर सकते हैं, जारी किया गया अध्यादेश सदन के अगले सत्र की समाप्ति के बाद 6 सप्ताह तक जारी रह सकता है, नियम के अनुसार जिस विधेयक पर अध्यादेश लाया जाता है उसे संसद के अगले सत्र में पारित करवाना ही होता है ऐसा नहीं होने पर राष्ट्रपति इसे द्वारा भी जारी कर सकते हैं, राज्यसभा में उक्त विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस ने इस विधेयक का विरोध किया था एवं विधेयक में बदलाव की वकालत की थी इसके बाद मोदी कैबिनेट में ने इसमें तीन बदलाव किए जिसमें प्रस्तावित कानून गैर-जमानती बना रहेगा लेकिन आरोपी जमानत के लिए सुनवाई से पहले भी मजिस्ट्रेट से गुहार लगा सकता है गैर जमानती कानून के तहत जमानत पुलिस द्वारा थाने में ही नहीं दी जा सकती, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि प्रावधान इसलिए जोड़ा गया है ताकि मजिस्ट्रेट पत्नी को सुनने के बाद जमानत दे सके उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित कानून में तीन तलाक का अपराध गैरजमानती बना रहेगा, मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करेंगे कि जमानत तभी दी जाए जब पति विधेयक के अनुसार पत्नी को मुआवजा देने पर सहमत हो मुआवजे की राशि सुनवाई कर रहे मजिस्ट्रेट द्वारा ही तय की जाएगी तीसरे संशोधन के अनुसार तीन तलाक के अपराध में मजिस्ट्रेट पति पत्नी के बीच समझौता करा सकते हैं।
केंद्र सरकार को अब यह बिल 6 महीने में पास कराना होगा यह अध्यादेश अब 6 महीने तक लागू रहेगा भारतीय संविधान में किसी बिल को पास कराने के लिए अध्यादेश का रास्ता बताया गया है किसी विधेयक को लागू करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है संविधान के आर्टिकल 123 के अनुसार जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो तब राष्ट्रपति केंद्र के आग्रह पर कोई अध्यादेश जारी कर सकते हैं, जारी किया गया अध्यादेश सदन के अगले सत्र की समाप्ति के बाद 6 सप्ताह तक जारी रह सकता है, नियम के अनुसार जिस विधेयक पर अध्यादेश लाया जाता है उसे संसद के अगले सत्र में पारित करवाना ही होता है ऐसा नहीं होने पर राष्ट्रपति इसे द्वारा भी जारी कर सकते हैं, राज्यसभा में उक्त विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस ने इस विधेयक का विरोध किया था एवं विधेयक में बदलाव की वकालत की थी इसके बाद मोदी कैबिनेट में ने इसमें तीन बदलाव किए जिसमें प्रस्तावित कानून गैर-जमानती बना रहेगा लेकिन आरोपी जमानत के लिए सुनवाई से पहले भी मजिस्ट्रेट से गुहार लगा सकता है गैर जमानती कानून के तहत जमानत पुलिस द्वारा थाने में ही नहीं दी जा सकती, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि प्रावधान इसलिए जोड़ा गया है ताकि मजिस्ट्रेट पत्नी को सुनने के बाद जमानत दे सके उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित कानून में तीन तलाक का अपराध गैरजमानती बना रहेगा, मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करेंगे कि जमानत तभी दी जाए जब पति विधेयक के अनुसार पत्नी को मुआवजा देने पर सहमत हो मुआवजे की राशि सुनवाई कर रहे मजिस्ट्रेट द्वारा ही तय की जाएगी तीसरे संशोधन के अनुसार तीन तलाक के अपराध में मजिस्ट्रेट पति पत्नी के बीच समझौता करा सकते हैं।
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