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सृष्टि के सबसे पहले गुरु नारायण हैं :- स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद


नरसिंहपुर/परमहंसी गंगा आश्रम:- (न्यूज़ एक्सप्रेस18) 19 जुलाई 2022- 

वेदों में प्रवृत्ति निवृत्ति दोनों का उपदेश:- स्वामी सदानंद सरस्वती जी
     वेद का मतलब ज्ञान का मूल स्त्रोत लोग समझते हैं कि वेदों में केवल परमार्थ की ही बातें बताई गई हैं जिन को पढ़कर पढ़ने वाला संसार से विस्तृत होकर मोक्ष मात्र के लिए प्रयास करने लग जाता है सांसारिक व्यवहार की कोई बात वेदों में नहीं बताई गई है जबकि सच्चाई यह है कि वेदों में प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों ही प्रकार के धर्म का उपदेश किया गया है उक्त उद्गार परमहंसी गंगा आश्रम में चल रहे छात्र मार्च महोत्सव में अपने आशीर्वचन में स्वामी श्री सदानंद सरस्वती महाराज ने व्यक्त किए उन्होंने आगे कहा कि इसी तरह गीता भी संसार के व्यवहार हमें सिखाती है गीता में आप देखेंगे कि पहले अध्याय में अर्जुन कहता है मैं युद्ध नहीं करूंगा अपितु सन्यास ले कर भिक्षा जीवी होकर भले जीवन बिता लूंगा पर स्वजनों का जिसमें वध हो वह युद्ध में नहीं करूंगा पलायन वादी हो रहे अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ऐसा ज्ञान दिया जिससे अंतिम अध्याय में वह युद्ध के लिए तत्पर दिखाई देने लगता है पूज्य स्वामी जी ने कहा कि इससे सिद्ध होता है कि वेद पुराण गीता आदि ग्रंथ लोगों को विरक ही नहीं बनाते अपितु गलत विरक्ति के रास्ते में जाने वाले को सही व्यवहार का मार्ग भी दिखा देते हैं इसीलिए इन ग्रंथों को पढ़ने सुनने से डरना नहीं चाहिए।


सृष्टि के सबसे पहले गुरु नारायण हैं :- स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद

     किसी भी वस्तु को बनाने के लिए उस वस्तु के ज्ञान की आवश्यकता होती है मकान बनाने के लिए मकान के दुकान बनाने के लिए दुकान के घड़ा कपड़ा भोजन बनाने के लिए और उनके ज्ञान की आवश्यकता होती है वैसे ही सृष्टि के निर्माण के लिए सृष्टि संसार की ज्ञान की आवश्यकता स्वाभाविक है वह ज्ञान भगवान नारायण को था इसीलिए उन्हें आदिगुरु कहा जाता है उक्त उद्गार आपने चातुर्मास प्रवचन के क्रम में परमहंसी गंगा आश्रम के सभा मंच से स्वामी श्री 1008 अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कही उन्होंने आगे कहा कि इसीलिए आज भी गुरु पर भार का स्मरण करने वाले नारायण समारंभ श्री वंदे गुरु परमपराम् कहकर ही प्रणाम करते हैं पूज्य स्वामी श्री ने बताया कि भगवान नारायण ने ब्रह्माजी के वेदों का अर्थात ज्ञान का भी उपदेश किया 'तेने ब्रम्ह्रदाये आदिकवये' इसीलिए नारायण के बाद ब्रह्मा जी का गुरु परंपरा में दूसरा नाम आना है।

क्षेत्र के भगीरथ में पूज्य महाराज श्री
     ज्योतिष पीठ पंडित आचार्य रवि शंकर द्विवेदी जी ने कहा कि सब जानते हैं कि भगीरथ राजा ने बड़े ही तप के बाद गंगा जी को धरती पर लाए थे जिस गंगा के असंख्य लोगों का उद्धार हुआ ठीक उसी तरह जो लोग उस गंगा में गोता लगाने के लिए नहीं जा पाते क्षेत्रीय लोगों के लिए पूज्य महाराज श्री ने क्षेत्र में परमहंसी गंगा को लेकर आए जो फल गंगा जी के जल में स्नान का है उससे कुछ कम फल परमहंसी गंगा में स्नान का नहीं है क्योंकि यह भी साक्षात गंगा ही है बल्कि यह गंगा परमहंसो की गंगा है इसीलिए सघ: पापनाशिनी के अलावा सघ: ज्ञान करीत्व रूप भी प्रकट है।

गीता का अनुष्ठान करता है मनोकामना पूर्ति
     स्वामी सदाशिव ब्रजेंद्रानंद शास्त्री ने कहा कि गीता केबल ज्ञान का ग्रंथ नहीं अनुष्ठान करने पर वह मनोकामना की पूर्ति करने में भी समर्थ है।
गुरु जब आदेश करें तो मन को केंद्रित रखें
     ब्रह्मचारी श्री निर्विकल्प स्वरूप ने अपने प्रवचन में कहा कि बहुत से लोग सत्संग में बैठते हैं पर लाभ सबको नहीं होता क्योंकि वह अपना मन कई जगह पर लगाए रहते हैं उसे सत्संग में केंद्रित करते ही नहीं हैं।
गीता को सुगीता हम ही बनाएंगे
     ब्रह्म विद्यानंद ब्रह्मचारी ने बताया कि गीता को ही अगर कोई साथ ले तो किसी और ग्रंथ के आश्रय की आवश्यकता ही नहीं रह जाती गीता तो भगवान श्री कृष्ण ने कह दी है उसे सुविधा तो हमें बनाना है गीता के तात्पर्य को हरदा मंगल करना ही गीता को सुगीता करना है।
     प्रवचन के पूर्व पूज्य शंकराचार्य जी की पादुकाओं का पूजन हुआ पंडित सुंदरलाल पांडे के द्वारा मंगलाचरण श्रीकृष्ण पाराशर ने और संचालन धारानंद ब्रह्मचारी ने किया बड्डू ग्वाल ने सुंदर संस्मरण सुनाए।

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