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नई दिल्ली - कृषि बिल - हंगामा क्यों है बरपा - आइये जाने

 


नई दिल्ली - न्यूज़ एक्सप्रेस १८  - कृषि और किसानों से जुड़े दो बिलों को लेकर किसानों के विरोध की गूंज संसद से सड़क तक सुनाई दे रही है. दोनों बिल लोकसभा में गुरुवार को पास हो गए. आइए आसान भाषा में जानते हैं कि क्या है इन बिलों में और क्या बताए जा रहे हैं इनके लाभ? साथ ही इनको लेकर क्या आशंकाएं जताई जा रही हैं, उस पर भी एक नजर डालते हैं.


पहले जानते हैं, ये दो बिल कौन से हैं -

- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020

- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020

 कृषि से जुड़े इन दो बिलों के अलावा आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 के प्रावधानों को लेकर भी किसानों की ओर से ऐतराज जताया जा रहा है. इस बिल को पहले ही लोकसभा में पास कराया जा चुका है.

जहां तक कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य  विधेयक-2020 का सवाल है तो ये राज्य-सरकारों की ओर से संचालित एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी मंडियों के बाहर फार्म मंडियों के निर्माण के बारे में है. भारत में 2,500 एपीएमसी मंडियां हैं जो राज्य सरकारों द्वारा संचालित हैं. 

वहीं दूसरा बिल [कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020)] कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग या अनुबंध खेती के बारे में है.


नए बिलों के लाभ -

1. राज्यों की कृषि उत्पादन विपरण समिति यानि एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के अधिकार बरकरार रहेंगे. इसलिए किसानों के पास सरकारी एजेंसियों का विकल्प खुला रहेगा. 

2. नए बिल किसानों को इंटरस्टेट ट्रेड (अंतरराज्यीय व्यापार) को प्रोत्साहित करते हैं, किसान अपने उत्पादों को दूसरे राज्य में स्वतंत्र रूप से बेच सकेंगे.  

3. वर्तमान में APMCs की ओर से विभिन्न वस्तुओं पर 6% तक बाजार शुल्क लगता है, लेकिन अब राज्य के बाजारों के बाहर व्यापार पर कोई राज्य या केंद्रीय कर नहीं लगाया जाएगा.  

4. किसी APMC टैक्स (या कोई लेवी और शुल्क आदि) का भुगतान नहीं होगा. इसलिए और कोई दस्तावेज की जरूरत नहीं.

खरीदार और विक्रेता दोनों को लाभ मिलेगा (निजी कंपनियों और व्यापारियों की ओर से APMC टैक्स का भुगतान होगा, किसानों की ओर से नहीं).

5. किसान कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग या अनुबंध खेती के लिए प्राइवेट प्लेयर्स या एजेंसियों के साथ भी साझेदारी कर सकते हैं. 

6. कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग निजी एजेंसियों को उत्पाद खरीदने की अनुमति देगी - कॉन्ट्रेक्ट केवल उत्पाद के लिए होगा. निजी एजेंसियों को किसानों की भूमि के साथ कुछ भी करने की अनुमति नहीं होगी और न ही कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग अध्यादेश के तहत किसान की जमीन पर किसी भी प्रकार का निर्माण होगा. 

7. वर्तमान में किसान सरकार की ओर से निर्धारित दरों पर निर्भर हैं. लेकिन नए आदेश में किसान बड़े व्यापारियों और निर्यातकों के साथ जुड़ पाएंगे, जो खेती को लाभदायक बनाएंगे. 

बिलों को लेकर क्या हैं आशंकाएं 

1. पंजाब और हरियाणा में - केंद्रीय एजेंसियां वर्तमान में 67% तक कृषि उपज खरीदती हैं जबकि भविष्य में यह केवल 20% खरीदेगी. बाकी उपज कौन खरीदेगा- इसका जवाब निजी एजेंसियां हैं, जो किसानों की निजी खरीद पर निर्भरता बढ़ाएगा.

2. चावल पंजाब और हरियाणा में केवल खरीद के लिए पैदा किया जाता है क्योंकि यहां स्थानीय खपत बहुत कम है. भविष्य में चावल की पूरी उपज निजी खरीद पर निर्भर हो सकती है.

3. किसान और किसान यूनियनों को डर है कि कॉरपोरेट्स कृषि क्षेत्र से लाभ प्राप्त करने की कोशिश करेंगे. 

4. किसान इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि बाजार कीमतें आमतौर पर MSP कीमतों से ऊपर या समान नहीं होतीं. (हर साल 23 फसलों के लिए MSP घोषित होता है)  

5. केंद्र ने MSP प्रणाली को जारी रखने का बेशक आश्वासन दिया होगा, लेकिन भविष्य में इसके चरणबद्ध ढंग से समाप्त होने की संभावना है.

6. विधेयकों से खाद्य पदार्थों के संग्रहण पर मौजूदा प्रतिबंधों को हटाने का इरादा दिखता है. ऐसी आशंकाएं हैं कि बड़े प्लेयर्स और बड़े किसान जमाखोरी का सहारा लेंगे जिससे छोटे किसानों को नुकसान होगा, जैसे कि प्याज की कीमतों में.

7. APMC के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है जो इन पारंपरिक बाजारों को एक वैकल्पिक विकल्प के रूप में कमजोर करेगा.  


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