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सियासी मजबूरी एक 'युवा' नेता ने दो बुजुर्गों को बनाया मुख्यमंत्री

सियासत- सियासी चश्मा देर तक बदला न जाए तो सब धुंधला कर देता है। जब युवा राहुल गांधी एक राज्य के दो दावेदारों के साथ धवल दंतपंक्ति दिखाते हुए तस्वीर खिंचा कर सार्वजनिक करते हैं तो उससे सब फीलगुड नहीं हो जाता। बल्कि ये नए सवालों को जन्म देता है।
     हाल ही में हुए 3 राज्यों में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत हासिल हुई लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर पार्टी के आला नेताओं में खींचतान के चलते कौन बनेगा मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को काफी माथापच्ची करना पड़ी, आखिरकार मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री का पेंच सुलझ गया मध्य प्रदेश में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे कमलनाथ मुख्यमंत्री होंगे वहीं राजस्थान की कमान अशोक गहलोत को सौंपी गई है,
    कांग्रेस पार्टी पिछले कुछ समय से बार-बार अपने मंचों से अपने भाषणों में अपने घोषणापत्र में युवाओं की बात करती आई है उनके मुद्दों को उठाने का दंभ भरती आयी है, युवाओं के मुद्दे उठाने का यकीन दिलाती आयी है वह पार्टी किसी युवा को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क्यों नहीं देख सकती।
     देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी के युवा अध्यक्ष ने दो  बूढ़े नेताओं को मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी मध्यप्रदेश में युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया से 25 साल  बड़े कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया वही राजस्थान में अशोक गहलोत को राज्य की कमान सौंप दी गई 67 साल के गहलोत सचिन पायलट से 26 साल बड़े हैं गहलोत व कमलनाथ दो तजुर्बेकार नेताओं को दो बड़े राज्यों की गद्दी सौंप दी गहलोत पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं वही कमलनाथ भी केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं जाहिर है दोनों को ही राजनीति का लंबा अनुभव है।
    अब जरा तस्वीर को दूसरे नजरिए से देखें अगर फैसला लेना इतना ही आसान था और पार्टी की पहली पसंद गहलोत और कमलनाथ थे तो इतना नाटक करने की क्या जरूरत थी मुख्यमंत्री का नाम घोषित करने में ढाई दिन एवं अनगिनत बैठकों का दौर चलता रहा कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और बाद में प्रियंका भी 12 तुगलक लेन के उस घर के अंदर बाहर होते रहे। 
    दूसरी बात जिस देश में दो तिहाई आबादी 35 साल से नीचे हो वहां युवा नेताओं को सूबे की नुमाइंदगी का मौका क्यों नहीं दिया जा सकता। 
   पिछले साल इसी सर्द महीने में देश की सबसे बड़ी पार्टी में युवा नेतृत्व की आवाज उठी और पार्टी ने एक युवा नेता को पार्टी की कमान सौंप दी तो फिर 1 साल में ऐसा क्या बदल गया की पार्टी को युवाओं को भूल बुजुर्ग नेताओं की जरूरत आन पड़ी, कहीं कमलनाथ और गहलोत को प्रदेशों में जातिगत समीकरण की वजह से तो नहीं चुना गया क्योंकि अगर ऐसा है तो कांग्रेस को तत्काल युवाओं की नुमाइंदगी का दम भरना बंद कर देना चाहिए।

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